निर्भया
निर्भया


१६ दिसंबर, २०१२
यह तारीख है वो जब कुछ दरिंदो ने मचाई थी हमारे समाज में तबाही,
देर रात लड़की को घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए
इस छोटी सोच से अपरिचित ही वो रह गयी थी,
अपने एक दोस्त के साथ चढ़ी थी बस में,
शायद सोचा होगा उसने लड़का भी है पास तो डरने की बात नहीं।
पर अंजान थी वो बस में बैठें आदमियों से जो लिपटे थे हवस की चादर में,
भुलाकर की घर में बहन उनकी भी होगी असुरक्षित
किया उन्होंने बलात्कार।
उन लड़कों ने नोचा था उस नारी को जिसके रूप को पूजते है वो,
और जो दोस्त खड़ा हुआ था अपनी दोस्त की रक्षा के लिए बहाया था उसका लहू।
फिर हक़ से फेंक दिया उन दोनों को किसी कूड़े की तरह
जो इस्तेमाल के बाद नहीं होता किसी के काम का।
पर अंत कहानी का नहीं हुआ वही
जन्मी निर्भया जो हज़ारों की आवाज़ का कारण बनी।
हम सब सड़क पर उतरे थे चिल्लाए भी और दिलाया था अपनी निर्भया को इंसाफ।
पर क्या सच में कभी इंसाफ मिल सकता है
एक लड़की को जिसकी हुयी मृत्यु शोषण के बाद,
उनको जो निकलते नहीं डर से घर के बाहर,
और वो जो न चाहकर भी अपनी बच्चियों को जाने नहीं देते खुली हवा में।
इंसाफ कभी काफी नहीं होगा पर अगर
यह गलत काम न हो तब समाज बेहतर बनेगा।