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Yogesh Kanava

Abstract Classics Crime

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Yogesh Kanava

Abstract Classics Crime

वो पुरुष

वो पुरुष

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शराफत का जामा 

पहनने का प्रयास 

कर रहा है ,हर आदमी 

अपनी कलुषित मानसिकता 

और 

अपने ही पापों को छुपा रहा है 

सफ़ेद वस्त्रों के पीछे। 


पर 

कभी मनोभावों को कोई छुपा सका है ?

शायद नहीं ,

इसलिए कि 

पुरुष 

सदा ही पुरुष रहा है 

जब भी कोई तरुणी 

निकलती है 

 यौवन का भार लिए 

और 

धीरे से सरकता है 


उसका आँचल हवा के झौंके से 

तो 

पुरुष की पैनी निगाहें 

करती हैं व्यभिचार 

उसके वक्ष से 

 ढूंढती हैं कुछ अनदेखा सा 

जो सचमुच अनदेखा नहीं होता। 

नारी वक्ष के अमृत को 

पीकर ही 

पुरुष 

पुरुष बना है। 


फिर भी कुछ खोजता है 

अपने मनोविकारों की 

संतुष्टि और 

आँखों के सुकून के लिए 

वो यह सब करता है 

वो यह सब कर सकता है 

क्योंकि 

वो पुरुष है 


समाज की मान मर्यादा का 

लोक लाज का 

उसे डर नहीं है। 

उसे कलंकी और 

कुलछ्छना कौन कहे 

सभी उसी की बिरादरी के हैं 

इसलिए वो यह सब करता है

वो ये सब 

कर सकता है।

क्योंकि 

वो पुरुष है। 


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