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कविता

कविता

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तू वो है जिसको बनाया है मैंने,

पर महसूस कोई भी कर सके,

तुझे ही तो दुनिया कविता के नाम से पड़े,

तू ना मुझे एक धुंधली खिड़की जैसी लगे,


जो मुझे पूरी दुनिया के सामने बया तो करे,

पर वो धुंधलापन कुछ मनचाहे राज़ केद रखे,

तू आई थी मेरी ज़िन्दगी में मनोचिकित्सक का मुखौटा पहने,

रुको मुखौटे से कुछ याद आ रहा है मुझे,

रहती तो मै भी हूं एक कवियत्री के रूप में,


यह रूप काली जैसा नहीं पर फिर भी शब्द बाया कर मुझे शक्ति दे,

यह रूप किसी माता जैसी नहीं फिर भी लफ्जो से प्रेम प्रकट करे,

यह रूप सिर्फ मेरा नहीं और ना है सिर्फ मेरे लिए,

पर है सबके लिए,


सुन तू ही तो है जिसे दुनिया कविता के नाम से पड़े,

मैंने अपने हर बार पनपे आसुओं से है मिलवाया तुझे,

बताया है उस प्यार के बारे में जो कभी ना मुझे अपना सका,

हर ज़ख्म पे मलाम तो नहीं तूने है लगाए,

बल्कि कईयों को आंखों के सामने लाकर मिलवाए,


देख हँसाए और रुलाए मुझे,

और बार बार महसूस कराये,

की हकीकत में तो यह पल है कब्र में चल बसे,

पर ज़िंदा रहेंगे मेरे हर शब्द में,

हर शब्द में।


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