तू
तू
क्यों डरती है तू,
क्यों खामोश है।
है किसका भय तुझे,
यहाँ सब खुद में मदहोश है।
न कोई किसी का दोस्त है,
न किसी को कोई होश है।
आँख मूंद चलते जा रहे,
शायद समय का कोई दोश है।
तू कर बुलंद खुद की आवाज को,
शायद सुन लेगा संसार।
लड़ अगर लड़ना पड़े तो,
तुझमें ताकत है बेशुमार।
इक तूफान का आग़ाज़ कर,
तू जीत की हुंकार भर।
इन मनचलों की कश्तियाँ,
तू डुबो देगी यह ललकार कर।
जला दे उन हाथों को,
जिसने फूंके तेरे पंख हैं
काट दे वह बेड़ियाँ ,
जो बांधे तेरे अंग हैं।
इन कोमल हाथों से तू,
अस्त्र उठा और वार कर
चुप रहकर बहुत देख लिया
अब चिल्ला, इक दहाड़ कर।
मत सोचना कभी तू
क्या सोचेगा यह ज़माना।
तू जीत, इक मिसाल बन,
बहुत हुआ आँसू बहाना।