भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार
आज व्यस्तता भरी जिंदगी में सरलता सबको भाता है,
हर काम हो जाए सरल इसके उपाय कई अपनाता है,
देखा जाता वो मनुष्य अक्सर पथ से भटक जाता है,
छोटे से सुख के लिए जाने कितनों को वो दुःख देता है,
रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के अनगिनत राह अपनाता है,
ये भ्रष्टाचार एक भयंकर संक्रामक बीमारी जैसी लगती,
जिसकी जड़े फैलती जाती है पर नींव खोखली होती है,
समाज में प्रतिष्ठा पाने हेतु गलत आचरण क्यों करता है,
नेता हो या हो अधिकारी पद हर जगह फैला भ्रष्टाचार है,
बुरे कर्म करने से पहले मनुष्य क्यों करता नहीं विचार है,
छल और कपट इतना भरा है बिक जाता यहाँ संसार है,
अपनों की ही नजरों में बन जाता कलंक का भागीदार है,
ये कैसी सच्चाई सपने पूरे करने में सौदे की बात आई है,
बटोर रहे हैं काला धन यहाँ तो ईमानदारी भी घबराई है,
सच को झूठ, झूठ को सच बनता कहता सच्चा सौदा है,
सीधे रास्ते पर चलने वाला क्यों बुराई की तरफ लौटा है,
अनजान बन हर पल क्यों टेढ़ी चाल में चला जा रहा है,
थोड़े से सुख के लिए अपनों को ही वह छला जा रहा है,
अपनी दुनिया रोशन कर दूसरों की दुनिया में अंधेरा भर,
पीठ पीछे भ्रष्टाचार का छुरा घोंप कर बस चला जा रहा है,
थोड़ा ठहरो विचार करो बदलो खुद को नया विस्तार करो,
पीढ़ियाँ सिसक रही है उन पर कुछ तो अब उपकार करो,
प्रण लो इस बदनुमा दाग को देश के भाग्य से मिटाना है,
भ्रष्टाचार दूर कर अपने देश को सुन्दर स्वर्ग बनाना है II