चोर चोर मौसेरे भाई
चोर चोर मौसेरे भाई
नैतिकता का भारी ओढ़ लबादा
नेतागण गलत शासन चला रहे हैं।
और ऐसे ही ऊॅंट के मुॅंह में जीरा
जाने कब से उनको खिला रहे हैं ।
आज कागजी घोड़े दौड़े
कागज का वे पेट भरेंगे।
जो लिख दें वे, वही ठीक है
उसे सत्य सब सिद्ध करेंगे।
चोर -चोर हैं मौसेरे भाई
नहीं किसी से यहाँ डरेंगे।
हाय माफिया के चंगुल में
फँसकर कितने लोग मरेंगे।
हड़प लिया भूखे का भोजन
अब देखो खिलखिला रहे हैं।
और ऊॅंट के मुॅंह में जीरा
जाने कब से खिला रहे हैं।
मानव- सेवा के बल पर जो
नाम खूब अपना चमकाएँ।
जनहित में जो आए पैसा
उसको वे खुद ही खा जाएँ।
सरकारी सुख- सुविधाओं का
सारे भ्रष्ट नेता मिल लाभ उठाएँ।
उनके आगे कुछ तुच्छ अधिकारी
नतमस्तक होकर शीश- झुकाएँ।
आज दूसरों की दौलत वे
अपने घर में मिला रहे हैं।
और ऊॅंट के मुॅंह में जीरा
जाने कब से खिला रहे हैं।
बनती जनहित में योजनाएँ
लाभ न उनको मिलता कोई।
लोग निकलते उनसे बचकर
जो देश के हित में काम कराएं।
दफ्तर में उन्हें दुत्कारा जाता
हार गए वे आखिर थककर।
कौन दबंगों से ले पाए भला
बोलो भला यहाॅं पर टक्कर।
लोग दिलासा देते उनको
भूखे जो बिलबिला रहे हैं।
और ऊॅंट के मुॅंह में जीरा
जाने कब से खिला रहे हैं।
आज आस्तीनों में छिपकर
कितने सारे नाग पल रहे हैं।
देख न सकते यहाॅं तरक्की
अपनों से वे खूब जल रहे हैं।
जिसने उनको अपना समझा
वे अब उसको ही लूटने चले हैं।
अन्दर से बिलकुल काले मन वाले
बनते ऐसे सब जैसे दूध के धुले हैं।
मीठी मीठी बातों का ऐसा रस
खूब घोंटकर सबको पिला रहे हैं।
देखो ज़रा ये ऊॅंट के मुॅंह में जीरा
जाने कब से उनको खिला रहे हैं।