वचन दो कान्हा
वचन दो कान्हा
तब रक्षा की थी तुमने
सुनकर द्रौपदी कि एक पुकार।
आज भी आ जाओ ना कान्हा
बेबस है नारी, होते कितने अत्याचार।
सुना है,
कलयुग में कल्की बनकर आओगे।
वचन दो,
अपना सुदर्शन जरूर लाओगे।
धड़ पर उनके शीश ना हो
जो नारी को सम्मान ना दे।
वो जिव्हा काट देना कान्हा
जो नारी को अपशब्द कहे।
सुना है,
कलयुग में कल्की बनकर आओगे।
वचन दो,
नारियों का खोया सम्मान उन्हे लौटाओगे।
जननी है वो,
गृहलक्ष्मी है वो,
कभी प्यारी बहन, बेटी
तो कभी चंचल सखी है वो।
उन दरिंदो की ना सही
किसी की तो सगी है वो।
सुना है,
कलयुग में कल्की बनकर आओगे।
वचन दो,
इस भारत वर्ष को फिर से
महाभारत का पाठ सिखलाओगे।
