एक नया जीवनदान !
एक नया जीवनदान !
कुदरत को इतना सताया,
उसने कभी न अपना गम बतलाया।
खामोश रहकर रोती रही वो,
इंसान, तेरे हर अत्याचार को सहती रही वो !
आज टूटा है सब्र का बाँध,
घायल हुआ है जिससे इंसान।
अब महसूस करो उस दर्द को,
जो तुमने दिया पेड़-पशुओं को।
जब कहा गया तुमसे,
रोक लगाओ प्रदुषण पर
क्या रख पाए तुम नियंत्रण खुद पर ?
कुदरत ने भी आज,
भरी होगी एक चैन की सांस,
जब दिखा होगा उसे,
ये साफ़ और नीला आसमान !
रोक ना पायी जब तुम्हें
कोई भी लकीर,
कोरोना वायरस के एक क़हर ने,
बाँध दी पैरों में ज़ंज़ीर !
तुम चाहे जितने भी
बुद्धिमान या शक्तिशाली हो,
कैदी बन गए हो
अपने ही घरों के पिजरों में।
कुदरत ने साबित कर दिखाया की,
जोर कितना है उसकी बाजुओं में !!
अब सुधर जाओ और कहना मानो,
प्रकृति का करो दिल से सम्मान,
हर पल मिलेगा तुम्हें,
एक नया जीवनदान।
