साथ
साथ
लोग पूछते हैं
आजकल के हालात पर
कुछ क्यों नही लिख रही,
उन्हें क्या कहूं;
क्या मेरे लिखे बिना तुम्हें
इस दुनिया की बेबसी नहीं दिख रही,
हाकिमों को सुनाने के लिए कुछ तो लिखो,
अब क्या समझाऊं पढ़ने लिखने का काम
जो उन्हें आता तो मुर्दों के ढेर को
वो रैली की भीड़ थोड़ी कहते,
जब उन्हें गम नहीं अपने सिवा किसी का
तो उन्हें क्या फर्क पड़ेगा किसी के लिखने का,
बेहतर होगा उन्हें सुनाने की बजाय,
अपनो के दुख सुनो,
किसी की शिकायत की बजाय,
किसी के साथ को चुनो!!