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Anita Bhardwaj

Inspirational

4  

Anita Bhardwaj

Inspirational

हल्ला बोल

हल्ला बोल

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"अपने बेटे को आपने समझा दिया कि लकड़ी को उतना मोड़ो की टूटे ना। ये नहींं बताया कि दूसरे की बेटी कोई लकड़ी नहींं; जीती जागती लड़की है।" - रोशनी ने अपनी सास कांता जी से कहा।

रोशनी ऑफिस से आज लेट हो गई थी।

रोशनी का पति अमर ऑफिस से आ चुका था!

आते ही उसने देखा कि मां रसोई में कुछ बना रही थी।

उसने मां को कहा - " मां मेरे लिए भी चाय बना देना।"

कांता जी तो पहले ही गुस्से से भरी बैठी थीं उन्होंने कहा - "ये फरमाइशें अपनी बीवी को सुनाना। मैंने पहले ही कहा था शादी के बाद घर संभाले यूं 7 बजे ऑफिस से आयेगी तो घर का काम कौन देखेगा।"

अमर ने कहा - " ठीक है मत बनाओ मेरे लिए। "

झुंझलाते हुए अपने कमरे में चला गया।

रौशनी को फोन किया - " रोशनी का फ़ोन व्यस्त आया।"

अमर का गुस्सा सातवें आसमान पर था।

कमरे में रखे तकिए सोफे पर फेंकने लगा।

थोड़ी देर बाद रोशनी घर आई।

आते ही सासू मां ने ताना दिया -" जल्दी से खाने की तैयारी कर लो। चेंज करने के बहाने ऊपर ही मत बैठी रहना।"

रोशनी की शादी को 7 महीने ही हुए थे, 7 महीनों में कितनी ही बार उसे इस अपमान का सामना करना पड़ा था।

ऊपर गई तो देखा पूरा कमरा फैला हुआ था।

अमर रोशनी को देखते ही उसकी तरफ बढ़ा और जोर से हाथ पकड़कर कहा - " किसके साथ थी अब तक।"

रोशनी को इन 7 महीनों में रोज कोई नया ताना मिलता था फिर भी वो उसको भूलकर अगले दिन फिर काम में लग जाती थी।

पर ये शायद उसके सब्र का अंत था और उसके आत्मसम्मान पर ठेस थी।

रोशनी ने उसका हाथ पीछे हटाते हुए कहा -" ट्रैफिक मेरे कंट्रोल में नहीं है। इतना ही शक और फितूर भरा हुआ है तो खुद लेने आ जाया करो। मुझे शौंक नहींं है बस में धक्के खाकर आओ और फिर यहां लगी हुई कचहरी में सफाई प्रस्तुत करो।"

अमर की आवाज सुनकर उसकी मां कांता जी भी ऊपर आ गई।

कांता जी ने कहा -" इसलिए कहती थी पढ़ी लिखी बहू नहींं चाहिए मुझे। अब मिल गया तुझे चैन।"

मां की बात से आग बबूला हुए अमर ने रोशनी को अपने गुस्से भरी आंखों से घूरा और कहा -" कल से नौकरी जाना बंद। घर रहो। सब अक्ल ठिकाने आ जायेगी।"

रोशनी ने अपने आंसू पोंछे और कहा - " नौकरी करना और छोड़ना दोनों फैसले लेने का हक सिर्फ मेरा है तुम्हारा नहीं।"

रोशनी का जवाब सुनकर अमर ने अपनी मां के सामने खुद को अपमानित महसूस किया और अपनी खोखली मर्दानगी का सबूत देने के लिए रोशनी के ऊपर हाथ उठाया।

कांता जी ने बीच बचाव किया और बेटे को नीचे ले गई।

रोशनी को थप्पड़ गाल पर नहींं , उसके आत्मसम्मान पर लगा।

नीचे कांता जी ने कहा -" तुझे कितनी बार समझाया है। गुस्से में थोड़ा अक्ल से काम लिया कर। ऐसी कानून मारने वाली औरतों को ऐसी मार मारनी चाहिए जो दिखे भी ना। किसी को बता भी ना पाएं और दिखा भी। लकड़ी को उतना मोड़ की टूटे ना और दर्द भी हो !

रोशनी अपना समान बांधकर नीचे आ चुकी थी।

कांता जी -" अरे बेटा। कहां जा रही है। इतना तो चलता है मियां बीवी में। तुझे भी तो अपनी जुबान बंद रखनी चाहिए थी ना।"

अमर फिर चिल्लाकर बोला -" जाने दो इसे। मैं भी तो देखूं कौनसा यार रखता है इसको !"

रोशनी अमर के पास गई और उसे एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया।

फिर कांता जी के सामने खड़ी होकर कहा - " बहू को जुबान का पाठ पढ़ाने से पहले अपने बेटे को जुबान की तहज़ीब सिखाओ !"

अमर थप्पड़ की मार से ज्यादा रोशनी के हौंसले से हिल गया फिर भी खुद को संभालते हुए कमरे से बाहर निकल रहा था तो कांता जी ने रोक लिया।

रोशनी ने समान उठाते हुए कहा -" आओ बाहर रुको मत। जरूर छोडूंगी ; नौकरी नहींं ; तुम्हे छोडूंगी। तुम्हारे जैसे आदमी के साथ रहकर अब खुद की नजरों में नहीं गिर सकती मैं। "

जो समान बच गया वो कोर्ट के ऑर्डर से वापिस जायगा।

रोशनी ने समान उठाया और चली गई।

मां बेटा रोशनी की आंखों में ये विद्रोह देखकर उसे रोकने की हिम्मत नहीं कर पाए।

और घर में सन्नाटा पसर गया।

दोस्तों। किसी को इतना भी ना दबाओ की उसके सहने की सीमा टूट जाए !


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