अपने दर्द को सहने की
अपने दर्द को सहने की
अपने दर्द को सहने की ,आदत डाल लो तुम ,
क्या पता ये दर्द कब ,हवा बन के डोले।
हवा बन के डोले ,और खाये हिचकोले ,
दर्द की वजह से तब ,कुछ मुँह से ना बोले।
रातों की चीख तड़पन करेगी ,बड़ी बेदर्द तब हँसी ये लगेगी ,
वो दर्द तब पिछले ,सभी राज़ खोले।
अपने दर्द को सहने की ,आदत डाल लो तुम ,
क्या पता ये दर्द कब ,हवा बन के डोले।
कर्मो का लेखा - जोखा खुलेगा ,पापों का फल तो भुगतना पड़ेगा ,
आँसू की बूँदों से ,तब अँखियाँ भिगोले।
जीने की चाह मरने लगेगी ,दर्द ही दर्द की सिसकी उठेगी ,
मौत के ना आने की , इंतजार में दिल रोले।
अपने दर्द को सहने की ,आदत डाल लो तुम ,
क्या पता ये दर्द कब ,हवा बन के डोले।|
