दृष्टि की सीमा तक फैला यह छोटे बड़े पत्थरों का विशाल संयोजन हरियाली चादर ओढ़कर कहीं सफ़ेद रुई की बड़ी गठ... दृष्टि की सीमा तक फैला यह छोटे बड़े पत्थरों का विशाल संयोजन हरियाली चादर ओढ़कर कही...
न जाने पास होकर भी तुम क्यूँ दूर नज़र आते हो। न जाने पास होकर भी तुम क्यूँ दूर नज़र आते हो।
मेरी ढीली मुट्ठी से क्यों मेरे बाजुओं को आजमाते हो, मेरे ज़ख्म की गहराई से, क्यों मेरे दर्द की इंतहा... मेरी ढीली मुट्ठी से क्यों मेरे बाजुओं को आजमाते हो, मेरे ज़ख्म की गहराई से, क्यो...
पर उधार की ज़िंदगी से तेरे आने की आस लिये बैठे हैं। पर उधार की ज़िंदगी से तेरे आने की आस लिये बैठे हैं।
मेरे पीछे अब सब मुझ पर क्यों मुस्कारने लगे हैं। मेरे पीछे अब सब मुझ पर क्यों मुस्कारने लगे हैं।
न जाने कितनी पतिव्रताएं न जाने कितनी सीताएं। न जाने कितनी पतिव्रताएं न जाने कितनी सीताएं।