उधार की ज़िंदगी
उधार की ज़िंदगी
तमाम बेबसी से बसर
हो रही है ज़िंदगी
बेतहाशा दर्द हैं
जिसे सीने में
जब्त किये बैठे हैं।
हर पल अपने अश्कों को
पलकों में छिपाये बैठे हैं
कहना बहुत कुछ है
पर चुप्पी साधे बैठे हैं।
मुस्कुराना भी दुष्वार है
पर होठों पर खिलखिलाहट
लिये बैठे हैं
जीने की भी कोई
ख्वाहिश नहीं।
पर उधार की ज़िंदगी से तेरे
आने की आस लिये बैठे हैं।
