STORYMIRROR

Neetu Lahoty

Abstract

4  

Neetu Lahoty

Abstract

जीना दुश्वार है

जीना दुश्वार है

1 min
285


सिर्फ किताबों में बराबरी की हिस्सेदार है 

वरना तो आज भी जीना दुश्वार है 

कहने को देवी कहते हो 


वरना तो आज भी अपने कदमों के नीचे रखते हो 

झूठ कहते हो दी आज़ादी तुमको 

हर बात पर तो वज़ह पूछते हो 


अपनी संगिनी सती -सावित्री चाहिये 

परायी औरत पर नज़र गड़ाये फिरते हो 

गर सच कहने पर आ जाये औरत 


तुम उसका गला घोंट देते हो 

गर अपने जज्बातों को बयां कर दे 

तो तुम उसको कठघरे में खड़ा कर देते हो 


सिर्फ अल्फ़ाज़ों में बराबरी की हिस्सेदार है 

वरना तो आज भी जीना दुश्वार है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract