STORYMIRROR

Vishalgorana

Others

3  

Vishalgorana

Others

गूँगी स्थिरता

गूँगी स्थिरता

1 min
14.1K


दृष्टि की सीमा तक फैला यह छोटे बड़े पत्थरों का विशाल संयोजन हरियाली चादर ओढ़कर कहीं सफ़ेद रुई की बड़ी गठरी सा कहीं मटमैली वीरानी से ये पहाड़ ये पहाड़ न कभी कुछ बोले है और न कभी कुछ बोलेंगे किसी अज्ञात गूँगी स्थिरता में खोऐ हुऐ आसमान सर पर उठाऐ हुए बादलों में मुँह छुपाऐ हुऐ ये पहाड़ कभी कुछ नहीं बोलेंगे


ഈ കണ്ടെൻറ്റിനെ റേറ്റ് ചെയ്യുക
ലോഗിൻ

More hindi poem from Vishalgorana