मैं और मेरी कलम
मैं और मेरी कलम
मैं और मेरी कलम का साथ,
न कभी छूटा और न छूटेगा।
पकड़ कर एक दूजे का हाथ,
एक दूजे को न कभी भूलेगा।
आएंगी मस्तिष्क में जब पंक्तियां,
कलम अपना कर्तव्य निभायेगी।
मिलते ही वह काग़ज़ को उसमें,
शब्दों की स्याही तभी बिछाएगी।
शब्द भी सभी तब चहक उठेंगे,
जब उन्हें आकार मिल जाएगा
पढ़ भी सकेगा जब कोई उन्हें,
तभी उनको भी आनंद आएगा।
सारगर्भित हो शब्द अगर तो,
वह एक पहलू बन जाएगा।
जिसको कोई समझ सका तो,
जीवन में परिवर्तन आएगा।
ईश्वर ने भी तो चाहा यही है,
समझना है हर इंसान को ही।
जीवन की अनमोल गति है,
परखना है हर इंसान को ही।
