मुझे किसी
मुझे किसी
मुझे किसी से कभी कोई गिला नहीं,
हो गर शिक़वा उससे जो मिला नहीं।
वहां होता कोई कभी किसी का नहीं,
जहां हो नहीं कभी कोई सीमा समय।
विपरित पड़ा जहां प्रवाह समय नहीं,
निहित होता स्वार्थ जहां हो समन्वय।
बिखरता आशियाना लफ़्ज़ों का नहीं,
अल्फाज़ों से लफ़्ज़ों का वहां हार्दिक।