वह चालबाज
वह चालबाज
सुना है वो मरू मरुस्थल भी हरे हो जाते हैं....
जब अपने करीबी साथ खड़े हो जाते हैं....
फर्क बहुत है जिंदगी की सीखी हुई तालीम में..
कोई सीखते हैं संघर्षों के हालातों से..
कोई उस्ताद बनते हैं चालबाज धोखेबाजों से.....
माना झुकने से रिश्ते होते हैं गहरे......
पर हर बार आपको ही झुकना पड़े....
तब दिल और पांँवों पर लगा दीजिए पहरे....
जुस्तज़ू है जिन्हें हर सुराख दरारों में झांँकने की आदत में.....
नादान हैं वो बेखबर हम जीते हैं उनकी महफूजि़यत की इबादत में..
वो चालबाज मशहूर हुए जो कभी काबिल ना थे..
दे गई मंजिल धोखा उन हुनरमंदों को..
होशियारी में जो इस दौड़ में कभी शामिल ना थे....
मैं वफा कर गया बसे उनकी आंँखों में काजल की तरह..
अपने ही कर्मों के बिसात पर वह मुझे ढूंँढते रहे..
बीते समय की शाख पर पागलों की तरह..
उनकी चाल देखकर जीती बाजी हार गया मैं..
माफ हर बार किया.. भरोसा करके सितम खा गया मैं।