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Jyoti Naresh Bhavnani

Inspirational

4  

Jyoti Naresh Bhavnani

Inspirational

मर्द नहीं हैं जागीर किसी की

मर्द नहीं हैं जागीर किसी की

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क्यों लड़ती हो बात बात पर ?

क्यों आपस में तुम झगड़ती हो ?

क्या लाई थी साथ में तुम जो, 

इतना तुम खुद पर इतराती हो ?


सास है तुम्हारी मां के जैसी ही,

क्यों उसको इतना रुलाती हो ?

क्यों पति पर समझती हो अधिकार खुद का ही,

क्यों मां से उसको तुम छुड़ाती हो ?


बहु तुम्हारी है तुम्हारी बेटी जैसी,

क्यों उसको बिना कारण तुम सताती हो ?

क्यों अपने निजी स्वार्थ की खातिर,

बेटे और बहु के झगड़े कराती हो ?


ननद तुम्हारी है तुम्हारी बहन के जैसी,

क्यों उसको अपने भाई से छुड़ाती हो ?

क्यों उसको कुछ भी देने से तुम,

आखिर इतना सदा कतराती हो ?


भाभी तुम्हारी है तुम्हारी मां के जैसी,

क्यों उसके विरुद्ध भाई के कान तुम भरती हो ?

क्यों ससुराल में खुद का नाम करने हेतु,

भाई और भाभी को लूट जाती हो ?


मर्द तो है पति, बेटा और भाई किसी का,

क्यों उसको हर रिश्ता निभाने से तुम सब रोकती हो ?

क्यों खुद से रिश्ता निभाने के लिए,

अन्य रिश्ते तोड़ने के लिए उसे मजबूर तुम करती हो ?


बेटा, पति और भाई नहीं है जागीर किसी की,

क्यों उस पर केवल खुद का अधिकार तुम समझती हो ?

क्यों उसकी संपति को अपनी समझकर,

उसको अपनी संपत्ति से ही बेदखल तुम करती हो ?


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