"राम की महिमा "
"राम की महिमा "
राम जन्म पुनीत काल
दशरथ नंदन
कौशल्या पुत्र का अभिनंदन
आचरण शिष्ट
गुरूओ की वाणी
राम निशाचरों के तारणहार
वैदेही संग पाणिग्रहण संस्कार
किया जनक को उऋण राम
पतित पावन सीता राम
मातृ वचन निर्वाह किया
रखी पिता की लाज
वन गमन प्रतिज्ञा बंध
भार्या सीता अनुज लक्ष्मण संग
खोला भक्तों का मुक्ति मार्ग
शबरी को भी मुक्ति देना था
ग्रहण कर उसके जूठे बेर
नवधा भक्ति का महत्व बता
शबरी को भेजा निज धाम
हनुमत भक्ति की रीत निभाई
लगा हृदय से प्रीत जताई
सुग्रीव संग मैत्री कर
धू धू हुई सोने की लंका और किया
रावण के अहंकार का अंत
मत उलझना उन वक्तव्यों में
घर का भेदी लंका दाहे
दिया विभीषण ने धर्म का साथ
उसकी भक्ति तप स्वर्ण हुई
पा लिया राम के चरणों में स्थान
भक्ति अहंकार की बंदिनी नहीं
ये मर्यादा व निष्ठा सापेक्ष हैं
दिया संदेश सकल जगत को
किया रावण के मद का अंत
और किया मुक्त भक्तिन
सीता को
धर्म और सत्य की स्थापना कर
राम लौटे अयोध्या धाम
माता केकई का हाथ थाम
भरत के शीश पर हाथ रख
दिया साधक को भक्ति का दान
राजमाता कौशल्या संग
गुरूओ की आज्ञा मान
संभाला राज्य का भार
रघुपति राघव राजा राम
पतित पावन सीता राम
" राम " हैं बीज मंत्र जिसने ये साध लिया
उसने भवसागर पार पा लिया।