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Poonam Singh

Inspirational

4  

Poonam Singh

Inspirational

नारी तुम पूजिता हो

नारी तुम पूजिता हो

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वो महलों के ख्वाब नहीं देखती

वो खुश हैं अपने मिट्टी के 

झोंपड़े में और दो वक्त

 की रोटी में


 माटी के घैला का पानी ही उसे

 मीठा लगता हैं

 मिट्टी पर सोना और

भर मांग लाल टेहुका सेनुर लगाना

 क्यों कि वो भरती हैं

चाँद और सूरज की गति


अपने बच्चों को थाली में परोसती हैं

जीवन चलने के लिए कुछ साँसे 

और पीती हैं पूरा का पूरा 

पहाड़ ताकि कल को 

कोई ज्वालामुखी उसे 

गला ना सके


हाँ वो मानती हैं वो खुशनसीब हैं 

उन लोगों से जो समाज से

तिरस्कृत हैं और उन

लोगों से भी जो परिष्कृत हैं


उसे गुरेज हैं ऐसे लोगों से

जो फैला रहे हैं कुसंस्कारों के बिज़ 

जो पकड़ती जा रही हैं अपनी जड़े


जब वो काटती हैं हँसुए पर सब्ज़ीयाँ

तब वो विलग करती हैं

ईर्ष्या द्वेष वैमनस्य का भाव  

बहुत आराम से


पैगंबर भी उसके आगे झुकते है क्यों कि

यहाँ भी वो याचक नहीं वो देती है 

अंजुरी भर समर्पण, आस्था और विश्वास 

बदले में पाती हैं

खोईछा भर आशीर्वाद


जब वो टांकती हैं बटन तब भरती हैं

उन छिद्रों को जो उसके 

कदम चाल को अवरूद्ध

करते हैं सत्य मार्ग पर चलने से


जब वो भरती हैं डेग 

तब लगाती हैं पृथ्वी का 

चक्कर ताकि उसका जीवन 

मर्यादित रहे सीता अनुसूया सा


जब दुनिया रचती हैं अपनी जालसाज़ी

तब वो चुनती हैं रास्ता ऊर्ध्व गति का

और चलायमान रहती हैं इस सृष्टि 

के अंतिम प्रहर तक


हाँ वो नारी शक्ति है.... 

 


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