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Poonam Singh

Romance

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Poonam Singh

Romance

" अखिल ब्रह्मांड "

" अखिल ब्रह्मांड "

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चलो कहीं दूर चले

गिलहरी सा फुदकता मेरा मन

लम्हा लम्हा तुम्हें 

पा लेना चाहता है

तुम्हारे अहसास मात्र से ही

ठंडी हवा ने मुझे छुआ है

भीतर की ऊष्मा 

अब बाहर निकल

हवा में पत्तों संग

गुनगुना रही है

तुम

सुन रहे हो ना 

उसकी सरसराहट 

आसमां के वितान तक 

ये हमारे प्रेम की 

उद्घोषणा है 

फिर मैं खींच लेती हूँ उसे

अपने हाथों से

कहीं सूरज का ताप

 जला ना दे 

चंदा की मादकता

 मदहोश ना कर दे

भरकर अपनी मुट्ठी में

अमलतास के पत्तों सा 

तुम्हारे अंतर्मन में 

चिपक अन्तर्वेदना को 

को खींच लेना चाहती हूँ

सुनो

पूछो उन वादियों से,

घटाओ से

नीले आसमां से,  

याद करो

जो हमारे प्रेम के गवाह बने

अंबुद बन तुम पर

बरस जाना चाहते हैं

भूली नहीं मैं उस 

पहली मुलाकात को

तुम्हारा मुस्कुराना जैसे

तुम्हारा मुझे बाँहों में भर लेना

देखो

यों ही मुस्कुराते रहना 

एक लम्बी यात्रा तय की हैं

मैंने

मैं से हम तक पहुँचने में

शायद हमारा बिछुड़ना 

फिर

मेरा यहाँ लौटना ही तो

हमारे अस्तित्व की पहचान है

समझ रहे हो ना तुम

सुनो

थोड़ा और नज़दीक आओ

इतने की हमारे प्रेम की

अमरबेल 

यादों की तलहटी में फैलती

 रहे युग युगान्तर तक ...



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