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Poonam Singh

Romance

4  

Poonam Singh

Romance

" अखिल ब्रह्मांड "

" अखिल ब्रह्मांड "

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434



चलो कहीं दूर चले

गिलहरी सा फुदकता मेरा मन

लम्हा लम्हा तुम्हें 

पा लेना चाहता है

तुम्हारे अहसास मात्र से ही

ठंडी हवा ने मुझे छुआ है

भीतर की ऊष्मा 

अब बाहर निकल

हवा में पत्तों संग

गुनगुना रही है

तुम

सुन रहे हो ना 

उसकी सरसराहट 

आसमां के वितान तक 

ये हमारे प्रेम की 

उद्घोषणा है 

फिर मैं खींच लेती हूँ उसे

अपने हाथों से

कहीं सूरज का ताप

 जला ना दे 

चंदा की मादकता

 मदहोश ना कर दे

भरकर अपनी मुट्ठी में

अमलतास के पत्तों सा 

तुम्हारे अंतर्मन में 

चिपक अन्तर्वेदना को 

को खींच लेना चाहती हूँ

सुनो

पूछो उन वादियों से,

घटाओ से

नीले आसमां से,  

याद करो

जो हमारे प्रेम के गवाह बने

अंबुद बन तुम पर

बरस जाना चाहते हैं

भूली नहीं मैं उस 

पहली मुलाकात को

तुम्हारा मुस्कुराना जैसे

तुम्हारा मुझे बाँहों में भर लेना

देखो

यों ही मुस्कुराते रहना 

एक लम्बी यात्रा तय की हैं

मैंने

मैं से हम तक पहुँचने में

शायद हमारा बिछुड़ना 

फिर

मेरा यहाँ लौटना ही तो

हमारे अस्तित्व की पहचान है

समझ रहे हो ना तुम

सुनो

थोड़ा और नज़दीक आओ

इतने की हमारे प्रेम की

अमरबेल 

यादों की तलहटी में फैलती

 रहे युग युगान्तर तक ...



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