पुरुषोत्तम राम
पुरुषोत्तम राम
मानकर पिता की आज्ञा,जो वनवास अपने लिए चुनता है l
हर किसी पर रखता दया भाव, ह्रदय जिसका निर्मलता से भरता है ll
दुखों को जीवन भर सहकर, होठों पर हमेशा मुस्कान सजाता है l
वहीं पुरुषोत्तम बनकर, इस संसार में श्रीराम कहलाता है ll
रामनवमी के दिन अयोध्या नगरी में मां कौशल्या के गर्भ जन्म लेता है l
पिता दशरथ और तीन माताओं का जेष्ठ पुत्र कहलाता है ll
लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न उसके अनुज भाई कहलाते हैं l
स्नेह अपार देते उनको इसलिए आदर और सत्कार भाइयों का पाते हैं ll
छोड़ के घर बार लक्ष्मण और पत्नी सिया संग वन को वो चुन लेते हैं l
पल भर की ना देरी करते नंगे पैर वन को निकलते हैं ll
सारी अयोध्या नगरी बिलखती छोड़ माता पिता का मान वो हृदय से रखते हैं l
ऐसा गौरवान्वित पुत्र इस दुनिया में कहाँ किसी को मिलते हैं ll
