सोलह सिंगार ले लो
सोलह सिंगार ले लो
मेरे कर्मों के सोलह सिंगार ले लो
आज की शाम उधार दे दो
मैं गुनगुनाना चाहता हूं
कुछ सुनाना चाहता हूं
मुझे कह लेने दीजिए
मैं दिल की कहना चाहता हूँ
मेरी मुस्कान यार ले लो
अपने ग़मों का तार तार दे दो
मैं गंगा बनकर सबको पावन करना चाहता हूं
हिमालय बनकर शत्रुओं को रोकना चाहता हूं
मैं मंदिर नहीं, मस्जिद नहीं
गोली खाकर सरहद पर शहीद होना चाहता हूँ
ऐ माँ मेरी पुकार ले लो
मेरे जीवन को सुधार दे दो
फूल बनकर चमन में खुशबू बिखेरना चाहता हूं
काम कोई आदमी वाला करना चाहता हूं
मैं राम नहीं, रहीम नहीं
इंसान हूं, इंसान बना रहना चाहता हूं
अपने बारूदी विकार दे दो
मेरी खुशियों के सोलह श्रृंगार ले लो।
