बेटी और बहू
बेटी और बहू
बेटी सबको प्यारी है,
क्योंकि वो अपनी है,
बहू सबको चुभती है,
क्योंकि वो पराई है।
घर के काम की जिम्मेदारी,
बहू की ज्यादा है,
क्योंकि बेटी को तो,
दूसरे घर जाना है।
आए कोई चीज पसंद बहू को,
तो बेटी को वो चीज देना जरूरी है।
तुम बहू हो इसलिए,
तुम्हें एडजस्ट करना जरूरी है।
काम हो जब भी,
आवाज बहू को लगानी है,
चाहे बेटी मुंह के,
आगे खड़ी हो,
फिर भी बहू से ही,
काम करवाती है।
गलती से अगर काम,
बेटी ने कर भी दिया तो,
माँ को बोझ लगने लगता है,
बहू को ताना मार,
उस से काम करवाया जाता है।
बेटी कुछ मांगे भाई से तो,
वो उसका हक लगता है
जब मांगे कुछ बहू तो,
तो फिजूल खर्चा दिखता है ।
जब आए घर पर कोई मेहमान,
तो बहू का बनाया खाना बेटी का बतलाती है,
झूठी तारीफ का पोटला,
बांधे चली जाती है।
बेटी को जरा तकलीफ हो तो,
पूरे घर को सर पर उठा लेती है ।
बहू को जरा तकलीफ हो,
तो ड्रामा क्वीन लगती है।
बेटी अगर 5 दिन लेटी है,
तो अच्छा लगता है,
बहू एक दिन से लेट,
जाए तो ड्रामा लगता है।
बेटी की शादी कर उसे भेज ससुराल तो,
माँ को दिन रात चिंता सताई है।
बहू भी किसी की बेटी है,
इसकी चिंता कभी जतायी है ।
न जाने ये कौन से लोग हैं,
जिन्हें सिर्फ अपने से मतलब है,
ये भूल जाते हैं,
ये तो मात्र हमारे किरदार है।
बेटी हो या बहू पहले तो हम इंसान हैं।
पहले तो हम इंसान है ।