माँ की सीख
माँ की सीख
दो घरों बंट जाने वाली,
सिर्फ दो ईश्वर ने तुम्हें ऐसा बनाया है।
ये कोई नई बात नहीं,
पुरानी रीत चली आई है।
हंसना नहीं ज्यादा तुम,
होंठ सिल दिए जाने हैं।
उड़ना नहीं ज्यादा तुम,
पंख काट दिए जाने है।
इठलाना इतराना यहीं छोड़ दो,
ससुराल में स्याना बन के रहना हैं।
तुम रूठ जाओ,
किसी को कोई फर्क़ नहीं पड़ता है।
तुमसे कोई ना रूठे
बस इस बात का ख्याल तुम्हें रखना है।
ससुराल में मनाने वाला कोई ना होगा,
सब मुंह फुलाकर बैठे होंगे।
तुम्हें ही सबके पास जाना है,
सबको तुम्हें ही मनाना है।
जो हंसना गाना शोर मचाना था,
वो सब तुमने यहां कर लिया है।
दिलों दिमाग में क्यों ना हज़ार चिंता हों,
उन्हें चेहरे पर ना आने देना।
जो भी तुम्हारे पास आए,
जवाब मुस्कराकर देना।
ससुर जेठ देवर संघ,
पर्दे में रहना सीख लो।
वहां माटी की गुड़िया बने रहना,
यह किरदार तुम्हारा है।
माँ हूँ बतला रही हूँ,
वहां बतलाने वाला कोई ना होगा
सुन लाडो हमने भी ऐसा जीवन जिया है,
अब तुम्हें भी ऐसी जीवन जीना है।
दो घरों में बंट जाने वाली,
सिर्फ ईश्वर ने तुम्हें ऐसा बनाया है।