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adv archana bhatt

Romance

4  

adv archana bhatt

Romance

प्रेम की अनुभूति

प्रेम की अनुभूति

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प्रिय, तुम्हें देखकर में हिमालय की चोटी पर, 

पड़ी बर्फ की तरह खिल गई।


हर बार तुम्हें देखकर, 

तुम्हारी ही होती चली गई।


तुम्हारे चेहरे की चमक ने,

हर बार मुझे एक नई रोशनी दी है।


ना जाने ऐसा क्या था तुम में, 

 मैं तुम्हारी ही और खींचती चली गई।


हर बार मैं कांच की तरह टूटती गई, 

लेकिन हर वक़्त तुम मुझे जोड़ते चले गये।


मैं जब जब गिरती, 

 तुम अपना हाथ बढ़ाए मुझे सम्भाल लेते।


ना जाने कितने कांटों में मैं फंसी रही, 

बिना खरोंच लगे तुमने मुझे महफूज निकाल लिया।


जब जब दुःख की तलवार मुझ पर चलती गई, 

तब तब तुम्हारे सहारे की ढाल मेरे आगे आती रही।


मद्धम मद्धम तुम्हारे साथ बहती चली गई,

तुम्हारे प्यार के रंगों में रंग गई।


न उम्र तुम्हारी ज्यादा थी, न अनुभव तुम्हें ज्यादा था,

लेकिन हमारे प्रेम के प्रति तुम्हारा विश्वास अडिग था।


सच्चा हूँ राजपूत ये कहकर,

तुमने मुझे अपना बना लिया।


हाथ तुमने मेरा ऐसा पकड़ा,

 न छोड़ने का वादा कर लिया।


रस्मों रिवाज को पीछा छोड़,

 हम दोनों ने एक दूसरे को स्वीकार किया।


हमने एक दूसरे से विवाह करके,

अपने प्रेम का प्रमाण एक दूजे को दे दिया।


तुम्हें जीवन साथी के रूप में पाकर, 

मैं स्वयं को धन्य पाती हूँ।


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