दिखावे की नींव
दिखावे की नींव
यह दिखावे की नींव बहुत बुरी होती है
जितने खड़े उतनी अंदर जमीन होती है
शुरू-शुरू में लगता,वो हवा में उड़ रहा,
सच में उसकी जमीन खोखली होती है
जब ख़त्म हो जाता है,दिखावे का मंजर,
तब ख़ुद में जिंदगी बड़ी गमगीन होती है
यह दिखावे को नींव बहुत बुरी होती है
जब गिरता वो,आसपास न भीड़ होती है
वह रोना चाहता है,पर रो नहीं पाता है,
दिखावे में अकेलेपन की ज़मीन होती है
इतना दिखावे में वो मशरूफ हो जाता है
अपनो की कोसों दूर उससे भीड़ होती है
यह दिखावे की नींव बहुत बुरी होती है
इसके आगे तो छोटी हर चीज होती है
पर जब दिखावेवाले की नींद खुलती है,
दिल में उसके पश्चाताप की पीर होती है
जितना देरी से वो आदमी सुधरता है,
उतना अधिक खुश्बु फूल से दूर होती है
दिखावे से तू सदा,दूर ही रहना साखी,
हकीकत रोशनी,सूर्य से भी बड़ी होती है।