मेरी प्यारी प्यारी मां
मेरी प्यारी प्यारी मां
मेरी माँ प्यारी -प्यारी,
मुझे सारे जहां से प्यारी,
यह जग है काँटों का वन,
मेरी माँ है केसर की क्यारी ।
आँखों में जिसके स्नेह अपार,
उसकी ममता का न पारावार,
अपने रक्त से सींच -सींच कर,
किया मेरे जीवन को साकार।
मेरा जीवन है सदा उसका आभारी ...
मेरे आँखों के हर सपने हेतु,
मेरे जीवन के लक्ष्य साधन हेतु,
सम्पूर्ण करने को किया मार्ग-दर्शन,
मेरी राहों में आने वाली हर बाधा हेतु,
बनकर रही सदा मेरी वो सहचरी ...
उसके मीठे बोलों में है अमृत वाणी,
वही मेरी गीता-रामायण और गुरुवाणी,
वास्तव में मेरा प्रथम गुरु है मेरी माता,
शत- शत वंदन करे उसका मेरी वाणी।
मैं तो जाऊँ अपनी माँ पर बलिहारी ....
रिश्ते तो बहुत है मनुष्य जीवन में,
सबकी अपनी महत्ता है जीवन में,
मगर हर रिश्ते की धूरी है मात्र माँ,
माँ से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं जीवन में ।
समेटे रहती है जो हर रिश्ते की डोरी....
जीवन के उतार-चढ़ाव, संघर्ष हो,
हर दुख, कष्ट, संताप या तनाव हो,
माँ की आशीषों की छांव हो जिसपर,
क्या बिगाड़ लेगा उसका चाहे तपती धूप हो।
यकीन मानो ! मेरी माँ तो तक़दीर है मेरी .....
मेरी माँ सदा चिरायु हो, स्वस्थ हो,
यही है मेरी ईश्वर से प्रार्थना ।
और कोई मन में अभिलाषा नहीं,
बस एक ही है मनोकामना ।
देखो! तोड़ना मत मेरी यह आशा नहीं ।
जीवन-पर्यंत रहूँगी मैं तुम्हारी आभारी ....