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सतीश मापतपुरी

Inspirational

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सतीश मापतपुरी

Inspirational

प्राणवायु

प्राणवायु

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मुफ्त में तुम्हें मिला था वो तुम्हें पचा नहीं।

प्राणवायु के लिए क्या युद्ध अब मचा नहीं।


झाड़ जंगल काट कर के रास्ता बना लिया।

पेड़ को मिटा के भव्य रेस्तरां खड़ा किया।

रेस्तरां सड़क  है मगर आदमी बचा नहीं।

मुफ्त में तुम्हें मिला था वो तुम्हें पचा नहीं।


लुप्त हुई नदियाँ कई खेत और मकान में ।

कारखाने, मोटरें, मशीन ही  जहान में।

भूल गए थे कि तुम जहान को रचा नहीं।

मुफ्त में तुम्हें मिला था वो तुम्हें पचा नहीं।


ऑक्सीजन देते थे जो वृक्ष तुमने काट दी।

स्वार्थ लोभ के लिए प्रकृति से ही घात की।

तेरा ये कपटऔ छल प्रकृति को जँचा नहीं।

मुफ्त में तुम्हें मिला था वो तुम्हें पचा नहीं।


हाट से खरीदते हो आज हवा पानी तक।

जुल्म की कहानी तेरी आ गई रवानी तक।

चेत जाओ ना तो अब बचेगा परखचा नहीं।

मुफ्त में तुम्हें मिला था वो तुम्हें पचा नहीं।


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