सावनी दोहे
सावनी दोहे

1 min

335
हरियाली के बीच से, गुजरे सुंदर नार।
धरती ने अदभुत किया,सावन में श्रृंगार।
बादल खोला घुंघटा, धरा गई सकुचाय।
बूंद अधर पर आ गिरा,भूमि उठी इठलाय।
कुदरत ने इंसान को, कितना दिया सनेह।
पर्वत,नदियाँ,विटप दी,शीत,ताप औ मेह।
पगडंडी पर डालती, गोरी धीरे पाँव।
रुख पे धूप कभी,कभी,हो बदली कीछाँव।
पाकर खुश्बू जुल्फ़ के,मचल उठा है धान।
काश!आदमी सोचता,कितना हसींजहान।