STORYMIRROR

सतीश मापतपुरी

Others

4  

सतीश मापतपुरी

Others

सावनी दोहे

सावनी दोहे

1 min
335



हरियाली के बीच से, गुजरे सुंदर नार।

धरती ने अदभुत किया,सावन में श्रृंगार।


बादल खोला घुंघटा, धरा गई सकुचाय।

बूंद अधर पर आ गिरा,भूमि उठी इठलाय।


कुदरत ने इंसान को, कितना दिया सनेह।

पर्वत,नदियाँ,विटप दी,शीत,ताप औ मेह।


पगडंडी  पर  डालती,  गोरी धीरे पाँव।

रुख पे धूप कभी,कभी,हो बदली कीछाँव।


पाकर खुश्बू जुल्फ़ के,मचल उठा है धान।

काश!आदमी सोचता,कितना हसींजहान।


Rate this content
Log in