अपराधी।
अपराधी।
यूँ ही नहीं बन गया मैं अपराधी ,
इसके पीछे किसी ने किया अपराध है
किसी ने झूठा फँसाया,
किसी ने बस फायदा उठाया
किसी ने तो कि मेरी जिंदगी बर्बाद है
ज़ालिम कानून तो अँधा है मेरा
कसूर क्या था मेरा, वो भी न देख पाया
वो कानून के रखवाले
वो दलीलों वाले, वो दलीलों के दलाल
सब भूखे थे साले
जब ज़मीर खोने लगा,
ज़िन्दगी देख मन रोने लगा
फिर बन गया मैं अपराधी
जिसका हर सपना अब अपराध है
यूँ ही नहीं बन गया मैं अपराधी
इसके पीछे किसी ने किया अपराध है
फिर भी मैं इतना बुरा नहीं
किसी की माँ बहन को बेवज़ह
घूरा नहीं
बिना मर्ज़ी मैंने चलाया हत्यार वो
छुरा नहीं
कुछ मेरे भी सपने थे
कुछ मेरे भी अपने थे
जो आज सब बेबुनियाद है
रोया था मैं, खोया था मैं
किया था मैंने अपराध
कई रातों तक सोया न मैं
देखा मैंने नासमझी उस जुर्म
की बुनियाद है
यूँ ही नहीं बन गया मैं अपराधी
इसके पीछे किसे ने किया अपराध है
ना वो बाप मेरा है
ना वो माँ मेरी है
ना ये ज़िन्दगी मेरी है
सब कुछ एक उस बन्दूक की
गोली का है
पता नहीं मेरी ईद , दीवाली कहाँ है
पता नहीं मेरी होली कहाँ है
किसी के सही के लिए मैंने जुर्म किया
और हो गयी मेरी ज़िंदगी बर्बाद है
वो सलाखें भी अब मेरा इंतज़ार करती है
वो बेड़ियाँ अब भी मुझे याद है
लिख कर कुछ लम्हे, लोकेश पाल करता,
अपने जज्बातों को आज़ाद है
यूँ ही नहीं बन गया मैं अपराधी
इसके पीछे किसे ने किया अपराध है
किसी ने झूठा फँसाया
किसी ने बस फायदा उठाया
किसी ने तो की मेरी ज़िंदगी बर्बाद है
यूँ ही नहीं बन गया में अपराधी ,
इसके पीछे किसी ने किया अपराध है।
