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S Suman

Crime Drama Tragedy

0.8  

S Suman

Crime Drama Tragedy

भीड़

भीड़

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भीड़ की कोई शक्ल नहीं होती,

भीड़ तो भीड़ होती है !

कोई रंग-रूप नहीं होती,

सही ग़लत मे परख करने की शक्ति नहीं होती,

सच पे से परदा उठाने की हिम्मत नहीं होती,

बस झूठ की वकालत की जाती है|


प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष तक पहुचने की

लालसा नही होती,

बस झूठी प्रत्यक्ष दीवारों को

मजबूत की जाती है,

और अप्रत्यक्ष, सच से कोसो दूर

कौतूहल मचाती रहती है|


भीड़ तो ऐसी ही होती है,

हज़ारों को बेघर कर,

सड़क पे ले आती है,

लाल सिंदूर को सफेदी मे

सराबोर कर देती है,


ना-जाने कितने मासूमों को

बेपनाह कर देती है,

कितनो की जिंदगी उजाड़ देती है,

सैकड़ों अनजान सी हँसी को

हमेशा के लिए आँसू मे बदल देती है|


अपनों को अपनों से लड़ने को

मजबूर कर देती है,

भीड़ जब आती है,

तब लहू की नदियाँ बहा कर लाती है,


कुछ नहीं बचता तबाह करने को,

सब कुछ खाक में मिला देती है|

एक ऐसी ही रात थी वो भी,

उस काली रात ने मुझसे

मेरे जिंदगी का सवेरा ही छीन लिया,

मुझे हमेशा के लिए तन्हा कर गया|


मुझसे मेरे अपनो ने ही

मेरी सबसे अज़ीज चीज़ की माँग कर ली,

सामना हुआ था मेरा भीड़ के साथ|

जिन्होनें मुझे पाकीज़ा नाम दिया था,

उन्होनें ही मुझसे मेरी पाकीज़गी छीन ली,


मेरे ज़िंदगी पे सवाल खड़ा कर दिया,

मुझे एक माटी का पुतला करार दे दिया,

मुझे मेरे पनाहगार से दूर कर दिया|


गुनाह मेरा या उनका नहीं था,

गुनाह तो सिर्फ़ उस भीड़ का था,

कातिल तो वो वक़्त था,

जब मैने खुदा को ईश्वर मान लिया था,

इस तूफान का फ़रमान तो

उस दिन ही ज़ारी कर दिया गया था|


ये भीड़ तो उसको अंजाम तक

पहुँचाने का ज़रिया था बस,

चारो-तरफ मौत का कोहराम मचा हुआ था,

लहू की नदियाँ बह रही थी.

सब कुछ ख़त्म कर दिया था भीड़ ने|


प्यासी थी वो हमारे खून की,

हमारे आँसुओं की,

हमारे रिश्तों के टूटने की खनकार की|


उस अहनद नाद की जो

एक माँ की होती है,

अपने बेटे की मौत पे,

एक पत्नी की होती है, सिंदूर उजड़ने पे,

मासूम चार साल की बची की होती है,

लहू मे लटपट लोगों को देख कर|


कोई पत्थर दिल भी पिघल जाए इस दृश्य को देखकर,

पर भीड़ तो बे-दिली होती है,

फिर पिघलने का कोई सवाल ही नहीं|

भीड़ तो ऐसी ही होती है !


एक तूफान सी आती और

सब कुछ उजाड़ कर चली जाती है|

अपने पीछे बस सॅनाटा छोड़ जाती है,

सबके दिलों मे अपने ख़ौफ़ की छाप छोड़ जाती है|

भीड़ तो ऐसी ही होती है !

अपनी प्यास बुझाने,

कुछ अंतराल बाद फिर दस्तक देगी वो !


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