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Brijlala Rohan

Classics Crime Inspirational

4  

Brijlala Rohan

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क्या थे कल हम ! आज क्या हो गए ?

क्या थे कल हम ! आज क्या हो गए ?

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क्या थे कल हम आज क्या हो गए !

हालात क्या थी हमारी आज क्या हाल हो गए ! 

होश उड़ गई हमारी विकास के आँकड़े सुनकर !

बेरहमी दिखाकर वो आज वो भी बेमिसाल हो गए !

क्या थे कल हम आज क्या हो गये !


लापरवाह की सीमा लाँघ दी हमने !

बापू की आत्मा आज कितनी कुंढती होगी !

देश की हालत देखकर जहाँ आज हिंसा नंगी होकर,

बेशर्मी का हद पार कर बेढंगी होकर आर्तनाद कर रही है ! 


चारों तरफ लूट मची है !

जिसका जो मिला वो उसी में बेपरवाह हो गए !

क्या थे कल हम ! आज क्या हो गए ! 

अपनी ही चाटुकारिता से हालत आज हमारी तबाह हो गए !


आए थे जो क्रांति का मसाल लेकर वो भी लोभ के झंझावतों में

फँसकर खुद भी वो लापरवाह हो गए !

क्या थे कल हम आज क्या हो गए !  

जूझ रहे आज अपनी ही बुनी बंधनों में खुद को बाँधकर !

बाँट लिया खुद को मजहब के नाम पर !


समरसता की समीर के आगे हम टिक न सके कभी !

अंधविश्वास, भ्रांति में जीकर ही हम वाह- वाह हो गए !

क्या थे हम आज क्या हो गए !

सोचो जरा हम बेहतरी के मंझधार में फँसकर बेशर्मी की हदें पार करके  

कितने  बेपरवाह हो गए ! क्या थे कल हम आज क्या हो गए !


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