क्या थे कल हम ! आज क्या हो गए ?
क्या थे कल हम ! आज क्या हो गए ?
क्या थे कल हम आज क्या हो गए !
हालात क्या थी हमारी आज क्या हाल हो गए !
होश उड़ गई हमारी विकास के आँकड़े सुनकर !
बेरहमी दिखाकर वो आज वो भी बेमिसाल हो गए !
क्या थे कल हम आज क्या हो गये !
लापरवाह की सीमा लाँघ दी हमने !
बापू की आत्मा आज कितनी कुंढती होगी !
देश की हालत देखकर जहाँ आज हिंसा नंगी होकर,
बेशर्मी का हद पार कर बेढंगी होकर आर्तनाद कर रही है !
चारों तरफ लूट मची है !
जिसका जो मिला वो उसी में बेपरवाह हो गए !
क्या थे कल हम ! आज क्या हो गए !
अपनी ही चाटुकारिता से हालत आज हमारी तबाह हो गए !
आए थे जो क्रांति का मसाल लेकर वो भी लोभ के झंझावतों में
फँसकर खुद भी वो लापरवाह हो गए !
क्या थे कल हम आज क्या हो गए !
जूझ रहे आज अपनी ही बुनी बंधनों में खुद को बाँधकर !
बाँट लिया खुद को मजहब के नाम पर !
समरसता की समीर के आगे हम टिक न सके कभी !
अंधविश्वास, भ्रांति में जीकर ही हम वाह- वाह हो गए !
क्या थे हम आज क्या हो गए !
सोचो जरा हम बेहतरी के मंझधार में फँसकर बेशर्मी की हदें पार करके
कितने बेपरवाह हो गए ! क्या थे कल हम आज क्या हो गए !