शिव के साथ कन्या का विवाह न करने का मेना का हठ
शिव के साथ कन्या का विवाह न करने का मेना का हठ
जब मेना ने सुना बारात नगर में आ पहुँची,
उसके मन में शिव दर्शन की इच्छा हुई,
वह बोली गिरिजा के होनेवाले पति को
पहिले मैं देखूँगी कि कैसा रूप है उसका
जिसके लिए मेरी बेटी ने उत्कृष्ट तपस्या की ।
मेना ने अद्भुत आकारवाले महेश्वर को देखा
उनके अनुचर भी अद्भुत थे, बवंडर रूप थे,
किन्हीं के मुँह टेढ़े थे,कुछ बड़े विकराल थे
कोई लंगड़े थे ,तो कोई अन्धे थे ,कुरूप थे।
शिव जी का भयानक वेश देखकर
मैना के हृदय में अत्यन्त दुःख हुआ,
अपनी कन्या के स्नेह को याद कर गोद में बैठा
विलाप किया, रोई और कहने लगीं-
नारद का मैंने क्या बिगाड़ा था
जिन्होंने बसता हुआ घर उजाड़ दिया।
नारद को न किसी का मोह है न माया
उनके न घर है, न धन है, न स्त्री है।
वह दूसरे का घर उजाड़ने वाले हैं
उन्हें न किसी की लाज है , न डर है
उनके उपदेश से पार्वती ने
बावले वर के लिये तप किया।
मैं पार्वती को लेकर पहाड़ से गिर पड़ूँगी
आग में जल जाऊँगी या समुद्र में कूद पड़ूँगी,
चाहे घर उजड़ जाये, अपकीर्ति फैल जाये
जीते जी बावले वर से इसका विवाह न करूँगी।