त्याग
त्याग
त्याग किया ही इसलिए जाता है
ताकि हमारे अपने खुश रहे
हमारे हिस्से की खुशियां उनकी झोली में रहे
उनका खुशी भरा चेहरा हमारी आंखों में बसा रहे
जब जी चाहे याद करें और
उनकी खुशी को ही अपनी खुशी समझा करे
मैंने अपनी जिंदगी में कई त्याग किया
त्याग किया मैंने दोस्त बनकर
ताकि उसकी सब जरुरत पूरी हो सके
त्याग किया मैंने बेटी बनकर
खुद को बड़ा दिखाकर
त्याग किया मैंने बहन बनकर
भाई की ख्वाहिशों को पूरा करके
त्याग किया मैंने पत्नी बनकर
अपनी आजादी पर पाबंदी लगाकर
त्याग किया मैंने बहू बनकर
उनके रीति- रिवाज अपनाकर
त्याग किया मैंने मां बनकर
अपनी सारी दुनिया उसे बनाकर
ये जिंदगी ही हमारे त्याग के इर्द- गिर्द घूमती है
बस हम उसे नज़रंदाज़ करते रहते हैं
और उसे अपने फ़र्ज़ का नाम देकर ज़िंदगी में आगे बढ़ जाते हैं
ये कड़वा सत्य है जो कबूल करना हमारे लिए मुश्किल है।