STORYMIRROR

Narendra Kumar

Classics

4  

Narendra Kumar

Classics

होली आई रे कन्हाई

होली आई रे कन्हाई

1 min
296


होली आई रे कन्हाई

होली आई रे।


आम पर मंजरी आ गयी

चना है गदराया

नये नये पंछी दिखे हैं

चहुं ओर उमंग है छाई।


होली आई रे कन्हाई

होली आई रे।


भाभी ननद देवर देवरानी

कर रही ठिठोली

जीजा जी को सालियों ने

सहेली संग मिल पहिरा दिया है चोली।


होली आई रे कन्हाई

होली आई रे।


हर जगह भांग है घुली

सभी पर खुमारी है छाई

वर्ग बन्धन सब छोड़ लोगों ने

एक दूजे को गले लगाया।


होली आई रे कन्हाई

होली आई रे।


जिनके सजन रहें परदेश

वो हैं आ

ज घर आए

सज संवर कर सजनी

मंद मंद मुसकाई।


होली आई रे कन्हाई

होली आई रे।


भेदभाव सब भूल लोग

एक दूजे के घर का खाएं

बड़ों के चरण छुए

छोटों पर आशीष बरसाएं।


होली आई रे कन्हाई

होली आई रे।


आपसी द्वेष मिटाने का

गुलाल बना सहारा

रंग लगा सब अंग में

झूम रहा जग सारा।


होली आई रे कन्हाई

होली आई रे।


दिवस मनाने की परंपरा कहां से लेकर आए

नफरत और बुराई के लिए एक दिन बनाएं

364 दिन सभी को गले लगाए।


होली आई रे कन्हाई

होली आई रे।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics