अनुपम रिश्ता
अनुपम रिश्ता
कैसी ये धुन कैसा ये साज़स्वर्ग से सुंदरअद्भुत एहसास
बजते मृदंग सजती सरगमदोनों सुन रहे परस्पर धड़कन
ज्यौं फूल धरा पर खिल रहाज्यौं आकाश ज़मी से मिल रहा
माँ के सीने मे दुबक क रनन्हे को कायनात मिल जाती
नन्हे शिशु की कोमल छुअनमाँ को प्रफुल्लित कर जाती
ममता का बहता मीठा झरना शिशु पाता है
तृप्ति अतुल्य दुनिया से बेखबर है
ये दुनिया रिश्ता जहाँ मे ये इक अमूल्य।