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Narendra Kumar

Abstract Classics Fantasy

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Narendra Kumar

Abstract Classics Fantasy

सपना

सपना

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सपना तो सपना है,

जिसे चाहो वही अपना है।

 

सपना सच होता,

सपना झूठ भी होता।

सपना के चक्कर में लोग,

बहुत कुछ खोया बहुत कुछ पाया।

 

जिस ने इस पर सही प्रयास किया,

वह इसे सार्थक बनाया।

 

सपना तो सपना है,

जिसे चाहो वही अपना है।

 

सपना न होता कुछ नहीं होता,

जानवर संग इंसान भी सोता।

 

सपना के बदौलत इंसान ने,

संस्कृति बनाई सभ्यता बनाया।

 

महल बनाई नगर बसाया,

दुनिया को अपने मुट्ठी में समाया।

 

सपना तो सपना है,

जिसे चाहो वही अपना है।

 

सपना न होता परिवर्तन न होता,

ऐ दुनिया इतनी सुन्दर न होती।

 

सब कुछ जड़वत होता,

न कोई कुछ पाता न खोता।

 

यहाँ किसी का कोई पहचान न होता,

न कोई किसी का दुश्मन और न मेहमान होता।

 

सपना तो सपना है,

जिसे चाहो वही अपना है।

 

सपना विकास की जननी,

सपना विनाश की जननी ।

 

जिस ने इसे जैसा लिया वैसा किया

किसी ने औषधि बनाई तो,

किसी ने बम बना लिया।

 

कोई मानवता विकास के लिए जीये,

कोई विनाश का बीज बो दिया।

 

सपना तो सपना है,

जिसे चाहो वही अपना है।

 

सपना देखना माना नहीं,

इसके दूसरे पहलू पर जाना नहीं।

 

जब तुम देखो सपना,

हृदय तुला पर पहले तौलना।

 

लाभ हानि मानवता का विचार कर के

 आगे बढ़ना।

 

सपना तो सपना है,

जिसे चाहो वही अपना है।


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