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Dr suresh Tiwari

Classics

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Dr suresh Tiwari

Classics

बस्तर के जंगलों में

बस्तर के जंगलों में

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मेरे बस्तर के जंगलों में 

अभी भी पाये जाते हैं पेड़, 

पेड़ों में है लकड़ियाॅं,

लकड़ियों में बसी कई जिंदगी, 

जिंदगी में जीवन की झलक

चींटी से लेकर आदमी तक


पेड़... करते हैं प्रतीक्षा 

कोसी, देवे, हिड़मे और जोगी का 

जिन्हें देखते ही खिल उठती है बाँछें 

देती इन्हें उपहार

पत्ते, दातून, सूखी लकड़ियाँ, चार, चिरौंजी, लाख, धूप

इनके साथ उन्मुक्त मुस्कान, प्राणवायु, उर्जा 

और देती है इन्हें दो जून की रोटी

तन ढकने को लंगोटी


पेड़... कोसा, देवा, मासो का पदचाप पहचानते हैं

हिड़मा के कुल्हाड़ी सजे कंधों को

पेड़ अच्छी तरह जानते हैं

आज भी... 

जोगा तलाशता है, इन पेड़ों में - 

गाड़ी की डाँड़ी, नागर का जूड़ा, टंगिया का बेंठ,

पर न जाने क्यों तपने लगी है सावन में भी जेठ


अब लगने लगा है डर 

बदलने लगे इनके भी तेवर

खो गया भोलापन मोटीयाती हुई खाल में

उलझ गये ये लोग शहरी वीरप्पन के जाल में


इसीलिये... 

जंगलों में रह गये हैं ठूँठ, 

जमीन की सतह से उठे हुये,

दिखते हैं सब शाख से कटे हुये, 

झूठी पड़ गयी है-सुरेश की वो पंक्तियाॅं

जिनमें लिखा था कि...


जिनकी जड़ें जितनी गहरी होती है, 

वो पेड़ उतनी ही घनी छाँव देती है

पनाह पाती जिंदगी 

एक-एक कर चले गये पास के पेड़ों पर, 

और करने लगे हैं प्रतीक्षा 

उस पेड़ की भी ठूँठ में तब्दील हो जाने की


फिर भी... 

इन ठूँठों को है विश्वास 

कि हांदा आयेगा, 

इन ठूँठों को सहलायेगा, 

और इन सूखे ठूँठों से 

फिर एक नया कोपल 

झाँकता नजर आयेगा


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