तारा
तारा
खो गया कही वो, जो तारा
रातों को जिसे ताक़ा मैंने
उसे ढूंड के कैसे लाऊं मैं
इस व्यथा को, कैसे सुनाऊँ मैं
जहाँ खुलें आसमां के नीचे,
सपनों एक बिछौना था
जहाँ कल्पित लोककथाओं में भी,
जीवन कितना नूतन था
बंजारों का जहाँ कारवां था
किस्सों में जहाँ सौदागर था
कागज़ की कश्तियाँ थी जहाँ
जहाँ प्रकाश भी मिट्टी वाला था।
