विनती करती लाज दुलारी
विनती करती लाज दुलारी
विनती करती जनक दुलारी,
सुन लो प्रभुवर आज।
कैसी विपदा आन पड़ी है,
रखना मेरी लाज।।
हरण किए लंकेश सिया को,
छल का लेकर साथ।
रो-रो रघुवर को पुकारती,
आ जाओ हे नाथ।
असुवन अखियांँ धार बहे जब,
कौन सँवारे काज।
कैसी विपदा आन पड़ी है,
रखना मेरी लाज।।
बैठ विचारे सोच रही थी,
हनुमंत आय पास।
दिखा अँगुठी भक्ति भाव से,
बड़ी जगाई आस।
देख निशानी अनुपम पाकर,
किया प्रीत पर नाज।
कैसी विपदा आन पड़ी है,
रखना मेरी लाज।।
चूड़ामणि वो दे हनुमत को,
कहती सारी बात ।
पवन पुत्र रघुवर से कहना,
रावण का ये घात।
कथा *माधवी* कहती गुरुवर,
है अनैतिक समाज ।
कैसी विपदा आन पड़ी है,
रखना मेरी लाज।।
