STORYMIRROR

Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

माँ गंगा

माँ गंगा

1 min
494

 गोमुख से जो आती गंगा, 

पर्वत चीरती जाती गंगा, 

ऋषिओं का मन मोहती गंगा, 

भक्तों का तन धोती गंगाI 


खेतों को तर करती गंगा, 

निर्धन का घर भरती गंगा, 

कल-कल छल-छल बहती गंगा, 

प्रदूषण को सहती गंगाI


चाहते हम सब निर्मल गंगा, 

साफ सुन्दर एक अविरल गंगा, 

अमृत है तेरा जल गंगा,

 अद्भुत है तेरा बल गंगाI 


शांत रहे न क्रुद्ध हो गंगा, 

सबके साथ से शुद्ध हो गंगा, 

जटा में शिव के रहती गंगा,

 जय माँ गंगा, जय माँ गंगाI 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics