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Deepak Shrivastava

Classics

4  

Deepak Shrivastava

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कृष्ण कर्ण संवाद

कृष्ण कर्ण संवाद

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जब चले कृष्ण कर्ण को लेकर

बतलाने सच जो छिपाया था

कर्ण जिसे जान ना पाया था

वोही एक तरीका था

यूद्ध को रोकने

का एक सलीका था

जब किया कृष्ण ने संवाद

बताया उसके जन्म का राज

कुंती ने जन्म दिया उसको 

पांडव का जेष्ट भ्राता हे वो

देंगे सम्पूर्ण राज वैभव तुझको

हस्तिनापुर इंद्रप्रस्थ का

सिंघासन तेरा होगा 

महाराजा तू कहलायेगा

माँ,भाई का प्यार तू पायेगा

जग मैं तू नाम कमायेगा 


लेकिम ना हुआ कर्ण टस से मस 

दुर्योधन को थी कर्ण की आस 

जिसको उसने मित्र बनाया था खास 

दिया जिसने सम्मान उसे

जग में दी एक नयी पहचान उसे

राधेय जो वो कहलाता था

राजा बनके इतराता था 

ऐसे में कैसे भूल सकूँ

दुर्योधन के उपकारों को

केवल मात्र वही सहारा हे 

वोही जीवन से प्यारा हे

उसकी मित्रता पर एक क्या

सो जीवन को भी मैं वार दूँ

हस्तिनापुर इंद्रप्रस्थ तो क्या

जग का वैभव ठुकरादून दूँ मैं 

नहीं मुझे लोभ सिंघासन का

ना मुकुट मुझे सर पर धरना

ना हीरे मोती को पाना 

पर इसी मित्रता की खातिर

मैं पार्थ का निशाना बनु

अपना जीवन गवादूँ मैं 


हे कृष्ण यूद्ध हो जाने दो

काल को काल से टकराने दो

होता हे जो हो जाने दो

मृत्यु तो एक दिन निश्चित हे

किस बात की फिर आपत्ति हे

क्यों अपने को बदनाम करूँ

क्यों अपना जन्म ख़राब करूँ

अपयस का भागी बनकर

ना जीवन को दाग़ लगाऊंगा 

एक दोस्त की दोस्ती को ठुकराकर

अपना जीवन ना व्यर्थ गवाऊंगा

अपना ना जीवन व्यर्थ गवाऊंगा।


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