Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Ajay Singla

Classics

5  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत -२०२; पूतना उद्धार

श्रीमद्भागवत -२०२; पूतना उद्धार

4 mins
427



श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित

नंदबाबा जब मथुरा से चले

झूठे न होते वासुदेव के कथन

रास्ते में विचार करने लगे !


उत्पात होने की आशंका मन में

तब उन्होंने निश्चय किया ये

भगवान् की शरण में हम जाएं

वे ही हमारी रक्षा करेंगे !


क्रूर राक्षसी एक पूतना नाम की

काम बस मारना बच्चों को

कंस की आज्ञा से उन्हें मारने के लिए

नगर, बस्ती में घूमा करती वो !


आकाशमार्ग से चल सकती थी

इच्छानुसार रूप बना ले

एक दिन सुंदर स्त्री बनकर वह

आई नन्द बाबा के गोकुल में !


मधुर मुस्कान से अपनी और

कटाक्षपूर्ण चितवन से उसने

चित चुराया ब्रजवासिओं का

घुस गयी नंदबाबा के घर में !


वहां उसने देखा कि बालक

श्री कृष्ण सोये हैं शय्या पर

नेत्र अपने बंद कर लिए

श्री कृष्ण ने उसे देखकर !


कालरूप भगवान् कृष्ण को

पूतना ने उठाया गोद में

ऊपर से मधुर व्यवहार करे

किन्तु कुटिल वो ह्रदय से !


भद्र महिला के समान दीखे वो

रोहिणी और यशोदा ने इसीलिए

सौंदर्यप्रभा से प्रभावित हो उसकी

रोक टोक नहीं की उससे !


कृष्ण को गोद में ले पूतना ने

अपना स्तन दे दिया उनके मुँह में

बालक को मारने के लिए उसपर

विष लगा रखा था उसने !


क्रोध को अपना साथी बनाकर

भगवान् ने दोनों हाथों से

स्तनों को दबाया उसके और

प्राणों के साथ दूध पीने लगे !


प्राणों के लाले पड़े पूतना को

'अरे छोड़ दे ' बोलीं वो ये

पैर पटककर वो रोने लगी

लथपथ शरीर था पसीने से !


उसकी चिल्लाहट का वेग भयंकर

पातळ और दिशाएं गूँज उठीं

बहुत लोग पृथ्वी पर गिर पड़े

आशंका से वज्रपात की !


अपने को छिपा न सकी वो 

पीड़ा इतनी हुई थी उसे

राक्षसी रूप में प्रकट हो गयी

प्राण निकल गए शरीर से !


विशाल शरीर गिरते समय भी

कुचल गया कई वृक्षों को

शरीर बहुत भयंकर था उसका

डर लग रहा ग्वालों, गोपियों को !


गोपिओं ने जब देखा कृष्ण

निर्भय हो खेल रहे छाती पर

कृष्ण को उन्होंने उठा लिया

झटपट से वहां पहुंचकर !


यशोदा और रोहिणी के साथ में

गोपिओं ने गौमूत्र से फिर

नहलाया बालक कृष्ण को

गौ रज लगाई अंगों पर !


गोबर लगाकर फिर बारह अंगों में

केशव आदि नामों से भगवान् के

उनके अंगों की रक्षा के लिए

ये सब कहने लगीं वे !


' अजन्मा भगवान् तेरे पैरों की

मनिमान घुटनों की रक्षा करें

यज्ञपुरुष जांघों की और

अच्युत रक्षा करें कमर की !


हयग्रीव पेट की, केशव ह्रदय की

ईश वक्षस्थलों की, सूर्य कंठ की

विष्णु बाँहों की, अरुक्रम मुख की

और ईश्वर रक्षा करें सिर की !


चक्रधारी भगवान् रक्षा के लिए

तेरे आगे रहे, और गदाधारी श्री हरी पीछे

धनुष, खडग धारण करने वाले

मधुसूदन, अजान दोनों बगल में !


उपेंद्र ऊपर, हलधर पृथ्वीपर

शंखधारी अरुगाय चारों कोनों में

और भगवान् परम पुरुष तेरे

मन की रक्षा के लिए रहे !


हृषिकेश भगवान् इन्द्रियों की

नारायण प्राणों की रक्षा करें

श्वेतद्वीप के अधिपति दिल की और

रक्षा करें योगेश्वर मन की !


परमात्मा भगवान् अहंकार की रक्षा करें

और पृशनि भगवान् तेरी बुद्धि की 

चलते समय भगवान् वैकुण्ठ और 

बैठते समय भगवान् श्री पति ! 

 

रक्षा करें माधव सोते समय 

खेलते समय गोविन्द रक्षा करें तेरी

और भोजन के समय पर

रक्षा करें तेरी, भगवान् यज्ञपति !


डाकिनी, राक्षसी, वृद्धग्रह और बालग्रह 

आदि ये सभी अनिष्टों को

 णमोचरण करने से विष्णु का

नष्ट हो जाएं भयभीत हो !


श्रीशुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित

इस प्रकार सब गोपिओं ने

प्रेम में बंधकर उनके

भगवान् की रक्षा की उन्होंने !


दूध पिलाया माँ यशोदा ने

पालने पर सुला दिया उनको

उसी समय नन्द बाबा और गोप सब

मथुरा से गोकुल पहुँच गए वो !


पूतना का भयंकर शरीर देख

आश्चर्चकित हो गए वे

कहने लगे, वासुदेव ने कहा जो

उत्पात आ रहा यहाँ देखने में !


तब तक व्रजवासिओं ने पूतना के

शरीर के टुकड़े कर दिए

जला दिया फिर उन टुकड़ों को

दूर ले जाकर गोकुल से !


शरीर से धुआं जो निकला 

अगर की सुगंध आ रही उससे

भगवान् ने दूध पिया था उसका

सारे पाप थे नष्ट हो गए !


जो मिलती है सत्पुरुषों को

वही परमगति मिली उसे

चरणों से शरीर दबाकर पूतना का

स्तनपान किया था भगवान् ने !


ब्रह्मा, शंकर, देवताओं द्वारा

वंदनीय हैं चरणकमल ये

माता को जो मिलनी चाहिए

उत्तम गति प्राप्त हुई उन्हें !


रतनमाला राजा बलि की कन्या

वामनावतार को जब देखा उन्होंने

पुत्र स्नेह का भाव उदय हुआ

उन्हें देख उनके ह्रदय में !


मन ही मन अभिलाषा करने लगी

मुझे बड़ी ही प्रसन्नता हो

यदि कभी इस बालक को

मैं अपना स्तन पिलाऊँ तो !


अपने भक्त बलि की पुत्री का

मनोरथ जान वामन भगवान् ने

मन ही मन अनुमोदन किया उसका

पूतना हुई वो ही द्वापर में !


श्री कृष के स्पर्श से

उसकी अभिलाषा पूर्ण हुई

और इसी से वो राक्षसी

परमपद को प्राप्त हुई !


ब्रजवासिओं के साथ नन्द जी

ब्रज में जब पहुंचे तो गोपों ने

पूतना के आने से मरने तक का

सारा वृतांत सुनाया था उन्हें !


पूतना की मृत्यु और कृष्ण की कुशलता 

सुनकर नन्द आश्चर्चकित हो गए

बहुत ही आनंद हुआ उन्हें

कृष्ण को उठा लिया गोद में |



Rate this content
Log in