श्रीमद्भागवत -२०३ ;शकट -भंजन और तृणावृत उद्धार
श्रीमद्भागवत -२०३ ;शकट -भंजन और तृणावृत उद्धार
राजा परीक्षित ने पूछा, प्रभो
लीलाएं बहुत मधुर भगवान् कीं
मन शुद्ध हो, श्रमणमात्र से ही
भाग जाती तृष्णा विषयों की!
बाललीलाएँ अत्यंत अद्भुत हैं
उन सब का वर्णन कीजिये
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
सब प्रसंग सुनाता हूँ तुम्हें!
कृष्ण के करवट बदलने का
उत्सव मनाया जा रहा था
भीड़ लगी थी घर में और उसी दिन
उनका जन्मनक्षत्र भी था!
यशोदा ने अभिषेक किया पुत्र का
मुंहमांगी वस्तुएं दीं ब्राह्मणों को
नहलाने के बाद देखा कि
नींद आ रही मेरे लल्ला को!
छकड़े के नीचे सुला दिया पुत्र को
कृष्ण को जब भूख लगी तो
आँखें खोलीं और रोने लगे
यशोदा जी तब उत्सव में थीं!
ब्रजवासिओं का सत्कार कर रहीं
इसलिए रोना न सुना उन्हें
तब श्री कृष्ण रोते रोते
बार बार पाँव उछालने लगे!
पाँव लाल लाल कोपलों समान
बड़े ही नन्हे और कोमल थे
शकटासुर बैठा उस छकड़े में
जिसके नीचे कृष्ण पड़े थे!
उनके नन्हे से पाँव लगते ही
वह विशाल छकड़ा उलट गया
उसपर अनेकों रसों से भरी हुईं
रखी हुईं बहुत सी मटकियां!
सब का सब फूट गया और
पहिये, धूरे असत व्यस्त हो गए
यह देख हो गए व्याकुल
वहां पर जो सभी लोग थे!
छकड़े के उलटने का कोई
कारण निश्चित न कर सके
बालक जो वहां खेल रहे थे
उन्होंने गोपों से कहा ये!
कि कृष्ण ने पांव की ठोकर से
पलट दिया है इस छकड़े को
परन्तु उन बालकों की बात पर
विश्वास न आया उन गोपों को!
यशोदा जी ने भी समझा
किसी ग्रह आदि का उत्पात ये
गोद में उठाया लल्ला को
शांति पाठ कराया ब्राह्मणों से!
नन्द बाबा ने भी उन्हें उठाया
औषधिओं के जल से अभिषेक किया
माता यशोदा ने गोद में लेकर
अपना दूध उन्हें था दिया!
परीक्षित, हिरण्याक्ष का एक पुत्र
उत्कच नाम का, बड़ा बलवान था
एक बार यात्रा करते समय
लोमश ऋषि के पास पहुँच गया!
कुचल डाला आश्रम के वृक्षों को
लोमश ऋषि को क्रोध आ गया
शाप दिया उसे कि हे दुष्ट
जा तू देह विहीन हो जा!
उसका शरीर उसी समय गिरने लगा
गिर पड़ा वो ऋषि के चरणों में
लोमश ऋषि प्रसन्न हो गए
कहा उन्होंने कि वैवस्वत मन्वन्तर में!
श्री कृष्ण के चरण स्पर्श से
मुक्ति हो जाएगी तेरी
छकड़े में आकर बैठा था वही असुर
कृष्ण के चरणस्पर्श से मुक्ति हुई!
एक बार की बात है कि
माँ यशोदा अपने लल्ला को
गोद में लेकर दुलार रहीं
सहसा ही बहुत भारी बन गए वो!
उनका भार सह न सकीं
उन्होंने भार से पीड़ित हो
पृथ्वी पर बैठा दिया कृष्ण को
अत्यंत आश्चर्यचकित हो रहीं वो!
तृणावृत नाम का एक दैत्य था
कंस का निजी सेवक था वो
कंस की प्रेरणा से बवंडर के रूप में
गोकुल में आया, उठा लिया कृष्ण को!
उठाकर आकाश में ले गया उन्हें
ब्रजरज से गोकुल को ढक दिया
लोगों के देखने की शक्ति हर ली
यशोदा जब गयी, कृष्ण बैठे थे जहाँ!
देखा कि कृष्ण वहां नहीं हैं
आंधी धूल की वर्षा में उनको
पता न चल पाया पुत्र का जब
शोक हुआ यशोदा जी को!
पृथ्वीपर वो गिर पड़ीं
और बवंडर शांत हुआ तो
धूल की वर्षा का वेग कम हुआ
दौड़ी आयीं गोपिआँ वहां जो!
यशोदा को रोते देखा और
कृष्ण नहीं हैं वहां, देखकर
उन्हें भी बड़ा संताप हुआ
रोने लगीं वो फूट फूटकर!
इधर जब तृणावृत बवंडर रूप में
कृष्ण को आकाश में उठा ले गया
भारी बोझ को संभाल न सका उनके
वेग उसका था शांत हो गया!
वह अधिक चल न सका
कृष्ण ने उसका गला पकड़ा ऐसे
कि उस अद्भुत शिशु को वो
अलग न कर सका अपने से!
निश्चेष्ट हो गया वह असुर
आँखें बाहर निकल आईं थीं
प्राणपखेरु उड़ गए उसके
ब्रज में गिरा कृष्ण के साथ ही!
स्त्रियां बैठी रो रही वहां
एक विकराल दैत्य को उन्होंने देखा
आकाश से एक चट्टान पर गिरा
चकनाचूर अंग अंग हुआ उसका!
भगवन श्री कृष्ण भी उसके
वक्षस्थल पर लटक रहे थे
यह देख विस्मित हुईं गोपिआँ
झट से लिया कृष्ण को गोद में!
माता यशोदा को दे दिया उन्हें
कहने लगीं, आश्चर्य की बात ये
कितनी अद्भुत घटना है
बालक लौटा मृत्यु के पाश से!
परीक्षित, एक बार एक राजा
सहस्राक्षनाम के, पांडुदेश में
नर्मदा के तट पर वो अपनी
स्त्रियों के साथ विहार कर रहे!
उधर से दुर्वासा ऋषि निकले
राजा ने प्रणाम नहीं किया उनको
ऋषि ने उनको शाप दे दिया
राक्षस हो जायेगा तू तो!
राजा उनके चरणों में गिर पड़े
दुर्वासा ने उनसे कह दिया
स्पर्श होते ही मुक्त होगा तू
श्री कृष्ण के श्री विग्रह का!
वही राजा, तृणावृत होकर
इस जन्म में आया था
और मुक्ति मिल गयी उसको
जब संस्पर्श पाया कृष्ण का!
एक दिन यशोदा जी कृष्ण को
दूध पिलाकर मुख चूम रहीं
श्री कृष्ण ने मुँह खोला ऐसे
जैसे उन्हें जँभाई आ रही!
माता ने उनके मुँह में देखा
आकाश, अंतरिक्ष ,सूर्य, दिशाएं
चन्द्रमाँ, अग्नि, वायु, समुन्द्र, नदिया
समस्त चराचर समाया था उसमें!
भगवान् सदा स्नेह के भूखे हैं
वात्सल्य प्रेम देख माता का
दूध पीने से तृप्ति न हो उन्हें
माता के मन में एक और ही शंका!
कहीं अपच न हो जाये
अधिक दूध पीने से पुत्र का
उत्पन्न करता है अनिष्ट की
प्रेम सर्वदा ही आशंका!
विश्वरूप दिखाकर कृष्ण ने
कहा, अकेले न पीता मैया
सम्पूर्ण विश्व मेरे मुख में बैठकर
पान कर रहा इस दूध का!
परीक्षित, अपने पुत्र के मुँह में
सहसा सारा जगत देखकर
यशोदा जी का शरीर कांप उठा
नेत्र बंद कर लिए थे फिर!
अत्यंत आश्चर्यचकित हो गयीं
सोचें कि हो न हो ये
मेरी आँखों का भ्रम है
आँखों में गड़बड़ी कुछ है मेरे!