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Sandeep kumar Tiwari

Classics

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Sandeep kumar Tiwari

Classics

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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नाम  से तेरे  सौ  बार तोड़ा हमने

एक ही दिल को कइ बार तोड़ा हमने।


टूटती है इक शै रोज अब कमरे में 

साथ दिल के भी घरबार तोड़ा हमने।


जिस हवा के आड़े जी रहे थे हम यूँ 

बस वहीं सांसों का तार तोड़ा हमने। 


दिल लगाए ना हम फिर, कभी वादा था

दिल से ही दिल का इक़रार तोड़ा हम ने।


क्या सितम है इस दिल को लगा के 'बेघर'

और फिर दिल का आधार तोड़ा हम ने।


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