कहूं भी तो कैसे
कहूं भी तो कैसे
गम अपने किसी से बांटो भी तो कैसे ?
अधरों में आई दुख भरी व्यथा
किसी से कहूं भी तो कैसे ?
अपनों में भी अजनबी माना गया हूं
किसी को अपना कहूं भी तो कैसे ?
आज हर सपना टूटा सा लगता है
हर अपना मुझसे रूठा सा लगता है
किसी को मनाओ भी तो कैसे ?
कल खत्म हो गई थी मुझसे पर आज
उस भूली हुई डगर पर जाऊं भी तो कैसे ?
आज हर आशा निराशा है हर उम्मीद ना उम्मीद है
नई उम्मीद मन में जगाऊं भी तो कैसे ?
जो कलम कल तक आशावादी लेख लिखती थी
अब वह निराशावादी है तुम ही कहो दोस्तों अपनी
इस कलम को समझाऊं भी तो कैसे ?
धरों में आई दुख भरी व्यथा किसी से कहो भी तो कैसे ?
