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Kushal Dutt

Classics

4  

Kushal Dutt

Classics

कहूं भी तो कैसे

कहूं भी तो कैसे

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गम अपने किसी से बांटो भी तो कैसे ?               

अधरों में आई दुख भरी व्यथा

किसी से कहूं भी तो कैसे ?   

अपनों में भी अजनबी माना गया हूं                 

किसी को अपना कहूं भी तो कैसे ?   

               

आज हर सपना टूटा सा लगता है

हर अपना मुझसे रूठा सा लगता है

किसी को मनाओ भी तो कैसे ?             

कल खत्म हो गई थी मुझसे पर आज                 

उस भूली हुई डगर पर जाऊं भी तो कैसे ?  

           

आज हर आशा निराशा है हर उम्मीद ना उम्मीद है          

नई उम्मीद मन में जगाऊं भी तो कैसे ?                 

जो कलम कल तक आशावादी लेख लिखती थी          

अब वह निराशावादी है तुम ही कहो दोस्तों अपनी           

इस कलम को समझाऊं भी तो कैसे ?                

धरों में आई दुख भरी व्यथा किसी से कहो भी तो कैसे ?


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