नारी की व्यथा
नारी की व्यथा
समझ कर अपना पनाहों में जिसके पास भी में रहना चाही
उसी ने ही मेरे साथ मनमानी करनी चाही l
लाचार मजबूर अपनी इज्जत को बचाती हुई
जिंदगी से तंग आकर मैंने खुद खुशी करनी चाहीl
लेकिन मौत का पैगाम मुझे ना आया
दुनिया ने मुझसे बहुत कुछ पाया,
मां के रूप में पहले तो मैंने उसे चलना सिखाया
फिर उसे मैंने खूब पढ़ाया जीवन पथ पर उसे चलना सिखलाया
पत्नी के रूप में मैंने उसे मेहनत करना सिखाया
सही और गलत का रास्ता दिखाया
मैं भी कुछ कर सकती हूं दुनिया को यह बतलाया I
फिर भी जिस्म भूखे भेड़ियों ने मुझे बहुत सताया
अब मेरे जीवन में आ गई धूप, कोसों दूर हो गई छाया
जिस्म के यह दलाल छोड़कर शर्म कमाने लगे हैं माया
लेकिन मैंने अपना यह जख्म किसी को नहीं दिखाया ?
गुस्सा तो मुझे तब आया जब मेरे ही रूप को पेट में ही दफनाया ?
कन्या भ्रूण हत्या लोगों ने इसका नाम बताया
थोड़े दिनों बाद सुनने में आया सरकार ने इसके ऊपर कड़ा रुख अपनाया ?
लेकिन ना जाने मुझे लगा कि मैं नींद से जागी और मुझे सपना आया?