ग़ज़ल
ग़ज़ल
मुझसे आख़िर वो ख़फ़ा क्यूँ है,
अब वो लड़की बेवफा क्यूँ है ?
मिलना उससे फिर बिछड़ जाना,
फिर से वो ग़म सौ दफा क्यूँ है ?
कुछ मजबूरी पेड़ की होगी,
वरना वो कट के हरा क्यूँ है ?
दिल को देना है इबादत तो,
दिल को देना फिर ख़ता क्यूँ है ?
उसने ख़ंजर ठीक है मारा,
फिर भी ये दिल अध-मरा क्यूँ है ?
बस काफी है आदमी होना,
आखिर वो इतना भला क्यूँ है ?
उसके दिल में मैं नहीं 'बेघर'
ये मेरे दिल को पता क्यूँ है ?